महाभारत का एक बेहद लोकप्रिय प्रसंग है. अर्जुन के तीरों से छलनी भीष्म पितामह के शर-शैय्या पर लेटने के बाद गुरु द्रोणाचार्य को कौरवों की सेना का सेनापति बनाया गया. गुरु द्रोण के पराक्रम से पांडवों में खलबली मच गई. उनके विजयी रथ को रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी सूझबूझ से गुरु द्रोण तक ये खबर पहुंचाई कि अश्वत्थामा मारा गया है. ये असल में एक प्रपंच था, जिस अश्वत्थामा को मारा गया था, वो एक हाथी था. लेकिन इस प्रपंच को इस तरह से रचा गया था कि गुरु द्रोण को लगा कि युद्ध में उनका बेटा अश्वत्थामा मारा गया है. द्रोणाचार्य ने शस्त्र त्याग दिए, जिसके बाद उनका वध कर दिया गया.
ये हजारों साल पुराना किस्सा इसलिए बताया गया है क्योंकि इसी तर्ज पर 1989 में एक बड़ा दांव खेला गया, शतरंज की बिसात बिछाकर जिसे प्रधानमंत्री बनाने की योजना बनाई गई, उसी ने उल्टा दांव चलकर पूरा खेल पलट दिया.
बात 1989 के चुनाव की है. राजीव गांधी की अगुवाई में कांग्रेस उस सफलता को दोहरा नहीं पाई, जो उसने 1984 के चुनाव में हासिल की थी. बोफोर्स घोटाले में घिरी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन वह बहुमत से कोसों दूर थी. राजीव गांधी तय कर चुके थे कि वह सरकार बनाने का दावा पेश नहीं करेंगे और विपक्ष में बैठेंगे. इस मौके को बखूबी भुनाया वीपी सिंह की अगुवाई वाली जनता दल ने. लेकिन पेच ये था कि जनता दल में सत्ता के दो केंद्र बन गए थे. एक तरफ वीपी सिंह थे, तो दूसरी तरफ चंद्रशेखर. चंद्रशेखर किसी भी कीमत पर नहीं चाहते थे कि उनका जूनियर (वीपी सिंह) प्रधानमंत्री बने. यही वजह थी कि उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए ताल ठोक दी. लेकिन वो जल्द समझ गए थे कि प्रधानमंत्री बनने के लिए उनके पास पर्याप्त समर्थन नहीं है. ऐसे में उन्होंने देवीलाल पर बड़ा दांव चला.
(चंद्रशेखर और देवीलाल/ फोटो क्रेडिटः इंडिया टुडे)
इसमें कोई शक नहीं था कि जनता दल के सांसदों का बहुमत वीपी सिंह की तरफ था, जिन्होंने बोफोर्स सौदे में हुई गड़बड़ियों को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया था. लोकसभा चुनाव में जनता दल की जीत एक तरह से वीपी सिंह की व्यक्तिगत जीत थी. लेकिन प्रधानमंत्री पद को लेकर वीपी सिंह और देवीलाल के बीच होने वाला ये मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला था.
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी किताब ‘एक जिंदगी काफी नहीं’ में इस घटना का जिक्र करते हुए बताते हैं, ‘मैं देवीलाल को अच्छी तरह से जानता था. मैं मुकाबले की सुबह उनसे मिला था. वे अपने-आपको लेकर किसी तरह के भ्रम में नहीं थे. उन्होंने खुद कहा था कि वीपी सिंह बेहतर प्रधानमंत्री साबित होंगे, लेकिन उनकी परेशानी ये थी कि वे चंद्रशेखर को जुबान दे चुके थे कि वे इस मुकाबले में जरूर उतरेंगे.’

(फोटो क्रेडिटः इंडिया टुडे)
नैयर कहते हैं, ‘मैं जानता था कि वीपी सिंह का रास्ता रोकने की मुहिम चंद्रशेखर ने ही शुरू की थी. खुद देवीलाल उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार करने के लिए पूरी तरह से तैयार थे. चंद्रशेखर उस तरह के नेता थे, जो अपनी बात न मनवा पाने की स्थिति में या तो पार्टी तोड़ देते या उसे छोड़ देते. देवीलाल ने चंद्रशेखर को उड़ीसा भवन बुलाया था. वे मुझे भी अपने साथ ले गए. वहां चंद्रशेखर के अनुरोध पर बीजू पटनायक पहले से मौजूद थे. यह बिल्कुल साफ था कि अगर वीपी सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं किया गया तो पार्टी टूट जाएगी. चंद्रशेखर ने कहा कि उन्होंने मधु दंडवते को देवीलाल का नाम प्रस्तावित करने के लिए कहा था, जिसका वे अनुमोदन करेंगे. चंद्रशेखर के कड़े तेवरों को देखकर मैंने देवीलाल से अनुरोध किया कि उन्हें चंद्रशेखर का फॉर्मूला स्वीकार कर लेना चाहिए. देवीलाल ने ऐसा ही किया.’
इस किस्से का किताब में जिक्र करते हुए नैयर बताते हैं कि मैं और देवीलाल कार से संसद भवन जा रहे थे. मैंने देवीलाल को अपना फॉर्मूला समझाते हुए कहा कि उन्हें अपना नाम प्रस्तावित और अनुमोदित होने के बाद खड़े होकर खुद ही अपना नाम वापस ले लेना चाहिए. और वीपी सिंह का नाम प्रस्तावित करना चाहिए. देवीलाल ने चौंककर मेरी तरफ देखा और फिर मुस्कुराते हुए राजी हो गए.

(वीपी सिंह, देवीलाल और चंद्रशेखर/ फोटो क्रेडिटः इंडिया टुडे)
और अश्वत्थामा मारा गया…
किताब में कुलदीप नैयर इस पूरे वाकये के बारे में लिखते हैं, ‘संसद भवन में पार्टी के सांसद नेता के चुनाव के लिए जमा हो चुके थे. देवीलाल चंद्रशेखर को धोखे में रखते हुए हिचकिचा रहे थे. मैंने उनकी हिम्मत बंधाते हुए उन्हें महाभारत का एक प्रसंग सुनाया. युधिष्ठिर ये कहने के लिए राजी हो गए थे कि अश्वत्थामा जो कि एक हाथी का नाम था, युद्ध में मारा गया. कौरवों की सेना में इसी नाम का एक योद्धा था, जिसने पांडवों के छक्के छुड़ा दिए थे. युधिष्ठिर ने झूठ नहीं बोला था लेकिन पांडवों ने उनके कथन को कौरवों में खलबली मचाने और उनका मनोबल तोड़ने के लिए इस्तेमाल किया. मैंने देवीलाल से कहा कि उनके नाम के प्रस्ताव और अनुमोदन के बाद चंद्रशेखर को दिया गया उनका वचन पूरा हो जाएगा, भले ही एक मिनट के बाद ही वे किसी दूसरे का नाम प्रस्तावित कर दें. देवीलाल को मेरी बात समझ में आ गई. इस ‘गुप्त फॉर्मूले’ की जानकारी मेरे और देवीलाल के अलावा सिर्फ पंजाब केसरी के संपादक अश्विनी कुमार को थी.’

(वीपी सिंह और राजीव गांधी/ फोटो क्रेडिटः इंडिया टुडे)
उधर, संसद में मधु दंडवते ने देवीलाल का नाम प्रस्तावित किया और योजनानुसार चंद्रशेखऱ ने इसका अनुमोदन किया. देवीलाल मेरे साथ हुई बातचीत पर कायम रहते हुए अपनी सीट से उठ खड़े हुए. उन्होंने अपना नाम वापस लेकर और वीपी सिंह का नाम प्रस्तावित कर हर किसी को चौंका दिया. सब कुछ इतनी तेजी से और इतना अचानक हुआ कि कोई भी वीपी सिंह के नाम का अनुमोदन करने के लिए सीट से खड़ा नहीं हुआ. कुछ देर के असमंजस के बाद जब सदस्यों की समझ में पूरी बात आई तो अजित सिंह ने उठकर वीपी सिंह के नाम का अनुमोदन किया. इस तरह वीपी सिंह सर्वसम्मति से संसदीय दल के नेता चुन लिए गए.
इस दौरान एक और दिलचस्प बात ये हुई कि देवीलाल ने घोषणा कर कहा कि वे ताउम्र ताऊ ही बने रहना चाहते थे. बाद में वीपी सिंह ने उन्हें उपप्रधानमंत्री बनाकर उनके बड़प्पन का सम्मान किया.

जब गलत प्रधानमंत्री के नाम की हो गई घोषणा
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान एक और दिलचस्प वाकया हुआ, जिसका जिक्र वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने अपनी किताब How Prime Ministers Resolve में किया है. वह लिखती हैं कि एक दिसंबर को संसद भवन के सेंट्रल हॉल में शाम चार बजे मीटिंग शुरू हुई. मंच पर वरिष्ठ नेता मधु दंडवते बैठे थे. उन्हें रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त किया गया था, जिनकी जिम्मेदारी निष्पक्ष चुनाव कराने की थी. उनके बगल में वीपी सिंह, चंद्रशेखर और देवीलाल बैठे थे. दंडवते ने संसदीय दल के नेता का चुनाव करने के लिए ये मीटिंग बुलाई थी. जैसे ही ये बैठक शुरू हुई. वीपी सिंह ने अपनी सीट से उठकर कहा कि मैं संसदीय दल के नेता के तौर पर देवीलाल के नाम का प्रस्ताव रखता हूं. उनके ऐसा कहते ही उनकी बगल में बैठे चंद्रशेखर अपनी जीत पर मुस्कुराए. लेकिन पूरे सभागार में सन्नाटा छा गया. दंडवते ने देवीलाल को संसदीय दल का नेता घोषित कर दिया. नाम के ऐलान के साथ ही UNI के रिपोर्टर ने तुरंत ऑफिस फोन कर सूचना दी कि देवीलाल देश के नए प्रधानमंत्री होंगे.
लेकिन इस बीच घटनाक्रम तेजी से बदले. देवीलाल अपनी सीट से उठे और उन्होंने कहा कि ये पूरा चुनाव भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ा गया है, जिसकी अगुवाई वीपी सिंह ने की है. देवीलाल ने कहा कि हरियाणा में जहां मुझे लोग ताऊ कहकर पुकारते हैं. मैं वहां ताऊ ही बनकर रहना चाहता हूं. इतना कहते ही देवीलाल ने संसदीय दल के नेता के तौर पर वीपी सिंह के नाम का ऐलान कर सभी को चौंका दिया…