बात 1997 की है. केंद्र में संयुक्त मोर्चा की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे एचडी देवेगौड़ा. सरकार में जनता दल मुख्य घटक था. लालू प्रसाद यादव उस समय जनता दल के अध्यक्ष थे. चारा घोटाले में फंसे लालू यादव चाहते थे कि देवेगौड़ा सीबीआई पर शिकंजा कसें. देवेगौड़ा के इनकार करने पर दोनों के बीच कड़वाहट बढ़ी. अंतत: देवेगौड़ा को पीएम पद गंवाना पड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की किस्मत चमक गई.
(एचडी देवेगौड़ा और लालू यादव)
चारा घोटाला सामने आने के बाद उस दौर में राष्ट्रीय स्तर पर सियासत में दबदबा रखने वाले लालू यादव बेचैन हो गए थे. वह कुछ भी करके सीबीआई की जांच को दबवाना चाहते थे. सीबीआई के बढ़ते दबाव के लिए लालू यादव ने देवेगौड़ा को जिम्मेदार ठहराया. अपनी किताब बंधु बिहारी में संकर्षण ठाकुर लिखते हैं कि सीबीआई से पूछताछ के बाद उस शाम लालू यादव ने प्रधानमंत्री को फोन किया और फटकार लगाई – यह सब अच्छा नहीं हो रहा है. जो आप करवा रहे हैं. कांस्पिरेसी करना है तो भाजपा के साथ करो. मेरे पीछे क्यों पड़े हो. यह पहली बार नहीं था जब लालू यादव ने देवेगौड़ा पर पूछताछ दबाने के लिए जोर डाला था. चारा घोटाला उनके प्रधानमंत्री और उनके पार्टी अध्यक्ष के बीच निरंतर टकराव का मुद्दा बन गया.
‘का जी देवेगौड़ा, इसलिए तुमको पीएम बनाया था कि…
जनवरी 1997 की पूछताछ से पहले जनता दल की एक बैठक में देवेगौड़ा और लालू यादव में एक कड़वी बहस हुई थी. ‘का जी देवगौड़ा, इसलिए तुमको पीएम बनाया था कि तुम मेरे खिलाफ केस तैयार करो. बहुत गलती किया तुमको पीएम बनाके.’ लालू यादव ने देवेगौड़ा के आधिकारिक निवास 7, रेसकोर्स रोड के मीटिंग हॉल में प्रवेश करते हुए टिप्पणी की. देवेगौड़ा ने भी वैसा ही जवाब दिया. ‘भारत सरकार और सीबीआई कोई जनता दल तो हैं नहीं कि भैंस की तरह इधर-उधर हांक दिया. आप पार्टी को भैंस की तरह चलाते हैं, लेकिन मैं भारत सरकार चलाता हूं’.
आगे संकर्षण ठाकुर लिखते हैं कि चारा घोटाला से पीछा छुड़ाने के लिए देवेगौड़ा पर लालू यादव के बार-बार दबाव डालाने के पीछे शायद यह जानकारी थी कि सीबीआई की टीम का नेतृत्व वह व्यक्ति कर रहा था, जिसे प्रधानमंत्री ने स्वयं चुना था- जोगिंदर सिंह, कर्नाटक कैडर के एक आईपीएस अधिकारी थे. देवेगौड़ा जोगिंदर सिंह से अपनी बात मनवा सकते थे और देवेगौड़ा ने शायद पहले ऐसा किया भी हो, लेकिन रास्ते से हटकर लालू यादव को उपकृत करने में देवेगौड़ा ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.
(एचडी देवेगौड़ा और लालू यादव)
लालू यादव ने PM बनने की पुरजोर कोशिश की थी
देवेगौड़ा के अचानक पतन के बाद की उन्मतत्ता भरी भ्रम की स्थिति में लालू यादव ने प्रधानमंत्री बनने का एक और अधिक दृढ़ प्रयास किया. पद के लिए विश्वसनीय उम्मीदवार कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के ज्योति बसु ने उनकी उम्मीदवारी पर वीटो लगा दिया था. आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू ने खुद को दौड़ से बाहर कर लिया था. उनका सोचना था कि उनके हाथ में समय था. वे संयुक्त मोर्चा की डूबती हुई नाव की कप्तानी करके भविष्य के अवसरों को बर्बाद नहीं करना चाहते थे.
मुलायम सिंह यादव? कम्युनिस्ट उनका समर्थन कर रहे थे और नायडू भी बहुत अधिक नहीं हिचक रहे थे, लेकिन लालू यादव अड़ गए. यदि एक यादव को ही प्रधानमंत्री बनाना है तो खुद उन्हें क्यों नहीं? यह सच था कि वे चारा घोटाले में आरोप का सामना कर रहे थे, लेकिन फिर कौन ऐसे आरोपों का सामना नहीं कर रहा था? क्या मुलायम सिंह पर भी भ्रष्टाचार के आरोप नहीं थे? लालू यादव उत्तर प्रदेश के यादव का समर्थन नहीं करेंगे, उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी और नायडू को स्पष्ट रूप से बता दिया. और फिर उन्होंने उनके सामने एक नाम का प्रस्ताव रखा – इंद्र कुमार गुजराल.
(लालू यादव और इंद्र कुमार गुजराल/ फोटो क्रेडिटः गेटी)
“गाड़ी भेज रहा हूं, आ जाइए आपको प्रधानमंत्री बनना है.”
बंधु बिहारी में संकर्षण ठाकुर लिखते हैं कि इंद्र कुमार गुजराल एक साफ छवि वाले, सम्मानित सीधे-सादे बौद्धिक व्यक्ति थे, जो शासन कला में बहुत अनुभवी थे. निश्चित तौर पर गुजराल के नाम पर किसी को अधिक आपत्ति नहीं होगी. गुजराल बेशक वह व्यक्ति नहीं थे, जिनके नाम पर घटक एकजुट होकर सहमत था, लेकिन वह व्यक्ति अवश्य थे, जिनके नाम पर सबसे कम असहमतियां थीं. गुजराल को उनकी नियमित झपकी से लालू के फोन ने जगाया “गाड़ी भेज रहा हूं, आ जाइए आपको प्रधानमंत्री बनना है.”
बिहार से राज्यसभा सदस्य चुने गए थे गुजराल
गुजराल के नाम का प्रस्ताव रखते समय उनके जिन गुणों का लालू ने कम्युनिस्ट के समक्ष उल्लेख किया था, वास्तव में उनमें से किसी भी गुण की वजह से उन्होंने गुजराल को नहीं चुना था. उन्होंने गुजराल को इसलिए चुना था, क्योंकि उन्हें लगा था कि वह उनके हितों की सबसे ज्यादा रक्षा करेंगे. गुजराल एक से अधिक मायनों में लालू के आदमी थे. लालू ही उन्हें राज्यसभा लेकर आए थे. गुजराल बिहार से राज्यसभा के सदस्य थे. लालू के विधायकों के वोटों पर निर्वाचित, पटना के एक फर्जी पते के आधार पर निर्वाचित, जिसकी व्यवस्था उनके लिए लालू प्रसाद यादव ने की थी.
(इंद्र कुमार गुजराल)
पटना में एक घर के आगे गुजराल के नाम का टंगा था लेटर बॉक्स
पटना के सब्जीबाग इलाके का वह घर,जहां इंद्र कुमार गुजराल के नाम का लेटर बॉक्स टंगा था. इस बात के सबूत के तौर पर कि वह व्यक्ति बिहार का निवासी था और राज्यसभा में बिहार का प्रतिनिधित्व करने के योग्य था. वह घर असल में अनवर अहमद का था. अनवर अहमद जो लालू यादव के घनिष्ठ मित्र और बिहार आवामी सहकारी बैंक के अध्यक्ष थे. गुजराल वे प्रधानमंत्री बने, जो लालू यादव के आदेशों का पालन करते और शुरुआत में उन्होंने ऐसा किया भी.
प्रधानमंत्री बनने के बाद के इंद्र कुमार गुजराल को देवेगौड़ा से विरासत में कैबिनेट मिली थी. चूंकि लालू यादव की देन से वह प्रधानमंत्री बने थे, इसलिए उनके मुताबिक ही अपनी कैबिनेट को भी उन्हें दुरुस्त रखना था. ‘बंधु बिहारी’ में संकर्षण ठाकुर लिखते हैं कि देवेगौड़ा से विरासत में मिली परिषद से जिस एकमात्र मंत्री को उन्होंने हटाया, वे थे बिहार से जनता दल के एक सांसद देवेंद्र प्रसाद यादव, लालू यादव के अनुसार वे अपनी औकात भूल रहे थे. चारा घोटाले में लालू यादव की भूमिका के बारे में सवाल उठाने का दुस्साहस कर रहे थे. लालू यादव ने कहा था – ‘सूली पर लटाका दो देवेंद्र यादव को’ तो प्रधानमंत्री ने कहा ‘जी मुख्यमंत्री जी’.
‘एक पीएम को हटाकर आपको बनाया और आप भी वही कर रहे हैं’
जब सीबीआई के तत्कालीन निदेशक जोगिंदर सिंह ने मीडिया में यह बयान दिया था कि – ‘मैंने अपने आप को चारा घोटाले में मिले सबूतों से संतुष्ट कर लिया है. हमारे पास जो सबूत उपलब्ध हैं. उनके आधार पर हम लालू यादव को चार्जशीट करने के लिए तैयार हैं. हम इस मामले में उन्हें चार्जशीट करने की औपचारिकताएं पूरी कर रहे हैं.’ ‘बंधु बिहारी’ में लिखा है कि लालू यादव ने तुरंत प्रधानमंत्री को, फोन मिलाया और गुस्से में पूछा -‘क्या हो रहा है ये सब. यह सब क्या बकवास करवा रहे हैं आप. एक पीएम को हटा कर आपको बनाया और आप भी वही काम कर रहे हैं.’ गुजराल दूसरी ओर से अपने लाचार होने के विषय में कुछ कह रहे थे. लेकिन लालू यादव ने फोन पटक दिया.
लालू यादव के इस तरह से फोन काट देने के कारण गुजराल काफी परेशान हो गए थे. उन्हें अभी एक महीना भी नहीं हुआ था पीएम बने और उनके सामने यह संकट आ खड़ा हुआ था. संकर्षण ठाकुर अपनी किताब में लिखते हैं कि अनवर अहमद जो उस समय लालू यादव के साथ थे, याद करते हैं – “साहब जर्द हो गए थे. वे कमरे में इधर-उधर टहल रहे थे. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या चार्जशीट होने के बाद मुझे इस्तीफा देना पड़ जाएगा. मैं इस बारे में अनिश्चित था. फिर उन्होंने दिल्ली चंद्रेशेखर जी को फोन किया.”
(लालू यादव और इंद्र कुमार गुजराल/ फोटो क्रेडिटः इंडिया टुडे)
लालू यादव के करीबी की छवि से नहीं निकल पाए गुजराल
चारा घोटाला में लालू यादव पर शिकंजा कसने के साथ ही मुसीबत संयुक्त मोर्चा और प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल की ओर कदम बढ़ा रही थी. गुजराल चाहते भी तो मुख्यमंत्री की जमानत नहीं करवा सकते थे. अदालतों ने जांच पर बाज की सी नजर गड़ाई हुई थी और नई दिल्ली में गुजराल के सहयोगियों ने ठान लिया था कि वे गुजराल को दायरे से बाहर जाकर लालू की मदद नहीं करने देंगे. दरअसल, वे लालू यादव को गठबंधन से बाहर निकालने के तरीके ढूंढ रहे थे. यदि उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं भी हुए होते तो भी वह व्यापक रूप से एक भ्रष्ट नेता माने जाते. लालू यादव एक बोझ बन गए थे. कम्युनिस्ट विशेष रूप से लालू यादव की संगत में नहीं दिखना चाहते थे. देवेगौड़ा जैसे लालू के ज्ञात विरोधियों के साथ-साथ कम्युनिस्टों ने भी गुजराल पर उनसे रास्ते अलग करने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया.
तमाम दबाव के बावजूद गुजराल ने मध्य मार्ग पर चलना जारी रखा- वे न तो लालू यादव की जमानत करवाएंगे और न ही उन्हें अपनी सरकार से बाहर करेंगे. 4 जुलाई 1997 को प्रधानमंत्री ने अपने आवास पर सभी घटकों की रात्रिभोज बैठक बुलाई. लालू भी आए. हालांकि वे सीबीआई द्वारा घिरे हुए थे और जनता दल में उनका समर्थन भी बहुत घट गया था. फिर भी उन्होंने सौदेबाजी का प्रयास किया. लालू यादव ने कहा, “शरद यादव से कहिए पार्टी अध्यक्ष की दौड़ से बाहर हो जाएं. तो मैं पार्टी का विभाजन नहीं करूंगा.” गुजराल यह प्रस्ताव शरद यादव के समक्ष रखने की स्थिति में नहीं थे. वे जानते थे कि जनता दल के सभी लोग और संयुक्त मोर्चा गठबंधन, विशेष रूप से लालू यादव से कितना क्षुब्ध थे.
लालू यादव के साथ बखूबी निभाया मित्रधर्म
5 जुलाई 1997 को लालू यादव ने जनता दल का विभाजन कर दिया. एक नए राष्ट्रीय जनता दल ने लालू यादव को अध्यक्ष नियुक्त किया. उसे पार्टी के 22 लोकसभा सांसदों में से 18 का समर्थन प्राप्त था. राज्यसभा के छह सांसद भी साथ आ गए थे. नई पार्टी संयुक्त मोर्चा गठबंधन का हिस्सा नहीं थी. लेकिन राष्ट्रीय जनता दल में शामिल मंत्री- रघुवंश प्रसाद सिंह और कांति सिंह संयुक्त मोर्चा सरका का हिस्सा बने रहे. ऐसा करके गुजराल ने लालू के प्रति दोस्ती का धर्म निभाया था.