तारीख 12 नवंबर…साल 1995…जगह मुंबई का महालक्ष्मी रेसकोर्स…
मौका था भारतीय जनता पार्टी के तीन दिवसीय महाधिवेशन का. बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और प्रमोद महाजन तक पार्टी के तमाम दिग्गज नेता मंच पर थे.फिजा में हल्की ठंडक घुली थी. हजारों की संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं का हुजूम उमड़ा हुआ था. अगले साल देश में आम चुनाव होने जा रहे थे. लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि आडवाणी इस महाधिवेशन में एक खास इरादे के साथ आए हैं. इरादा ऐसा जिसकी उनके अलावा किसी को भनक तक नहीं थी. वाजपेयी ने अपना संबोधन खत्म ही किया था कि आडवाणी उठे और कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए ऐलान किया कि हम अगला चुनाव अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में लड़ेंगे. वह पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. ये सुनते ही पूरी सभा में सन्नाटा पसर गया.
आडवाणी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कई सालों से न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ता बल्कि आम लोग भी यही नारा दे रहे हैं कि अगली बारी अटल बिहारी. मुझे पूरा यकीन है कि बीजेपी अटलजी की अगुवाई में अगली सरकार बनाएगी. आडवाणी जैसे ही अपनी बात खत्म कर कुर्सी पर बैठने लगे. वाजपेयी झट से उठे और माइक पकड़कर कहा कि हम सरकार बनाएंगे और जरूर बनाएंगे लेकिन आडवाणी जी के नेतृत्व में.
न वाजपेयी मानने को तैयार थे और न ही आडवाणी. दोनों एक दूसरे को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताते रहे. अगले कुछ मिनटों तक दोनों के बीच की इस ‘आप-आप’की खट्टी-मीठी तकरार के गवाह मंच पर आसीन नेताओं से लेकर हजारों कार्यकर्ता रहे. इस दौरान आडवाणी और वाजपेयी के बीच का संवाद कुछ इस तरह का था…
आडवाणी- हम अटल जी के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ेंगे.
वाजपेयी- हम सरकार बनाएंगे और आडवाणी जी हमारे प्रधानमंत्री होंगे.
आडवाणी- घोषणा हो चुकी है.
वाजपेयी- तो मैं भी घोषणा करता हूं कि प्रधानमंत्री…
आडवाणी- अटल जी ही होंगे….
वाजपेयी – आपने ये क्या ऐलान कर दिया? कम से कम मुझ से तो बात करते.
आडवाणी – क्या आप मानते? अगर हमने आपसे पूछा होता….
आडवाणी फैसला कर चुके थे. वह अगले साल होने जा रहे चुनाव के लिए बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर वाजपेयी को चुन चुके थे. लेकिन इस फैसले से पार्टी और कार्यकर्ता दोनों हैरान थे. हैरानी का आलम ये था कि आडवाणी मुंबई के जिस होटल रूम में ठहरे थे. उसी शाम उस समय बीजेपी के महासचिव रहे गोविंदाचार्य वहां उनसे मिलने पहुंचे. उन्होंने कमरे में पहुंचते ही पहला सवाल किया कि आप इस तरह का ऐलान कैसे कर सकते हैं? इस पर आडवाणी ने कहा कि मैंने वही किया, जो मुझे ठीक लगा.
इस घटनाक्रम और बातचीत का पूरा ब्योरा वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने अपनी किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर डिसाइड’ में किया है. वह बताती हैं कि जब मैंने इस पूरे मामले पर आडवाणी से पूछा तो उन्होंने मुझसे कहा था कि ‘अगर मैं इस पर दूसरों की राय लेता तो इस फैसले पर कभी नहीं पहुंच पाता.’
वाजपेयी को PM कैंडिडेट बनाना दांव या कुछ और!
मुंबई में आडवाणी ने जो ऐलान किया. उससे पार्टी के भीतर और बाहर हर कोई हैरान था. ये वो दौर था, जब आडवाणी, वाजपेयी से बड़ा चेहरा थे. 1990 की उनकी रथ यात्रा से वो पॉलिटिकल स्टार बन गए थे. कई लोगों को संदेह था कि वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का आडवाणी का फैसला उनकी एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था. उन्होंने वाजपेयी को इसलिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया क्योंकि उन्हें खबर लग गई थी कि पीवी नरसिम्हा राव हवाला मामले में जल्द से जल्द चार्जशीट दाखिल कराने की तैयारी में हैं. हवाला मामले में आडवाणी सहित कई बड़े नेताओं पर आरोप था.
नीरजा चौधरी अपनी किताब में लिखती हैं कि संभवत: आडवाणी को ये अंदाजा लग चुका था कि अगर वे प्रधानमंत्री पद के लिए खुद के नाम का ऐलान करते हैं तो उन्हें हवाला मामले में आरोपी बनाए जाने की वजह से उम्मीदवारी से पीछे हटना पड़ सकता है, जो कि एक बड़ी शर्मिंदगी होगी. ये संयोग था या कुछ और… प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर वाजपेयी के नाम के ऐलान के दो महीने बाद ही जनवरी 1996 में हवाला मामले में चार्जशीट दाखिल की गई, जिसमें आडवाणी को आरोपी बताया गया. इससे आगबबूला आडवाणी ने तुरंत संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने दो टूक कह दिया कि जब तक वे इस मामले में बेदाग साबित नहीं होंगे, संसद में कदम नहीं रखेंगे.ऐसे में पार्टी की जोरआजमाइश के बाद भी उन्होंने 1996 का चुनाव नहीं लड़ा. ये उनकी हठ ही थी कि 1998 में इस मामले में बेदाग साबित होने के बाद ही उन्होंने संसद में वापसी की.
आडवाणी के शक की सुई…
नीरजा चौधरी लिखती हैं कि आडवाणी को पूरा विश्वास था कि नरसिम्हा राव ने हवाला केस में चार्जशीट दाखिल कराने की जल्दबाजी की ताकि प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए वाजपेयी का रास्ता साफ हो सके. राव कैबिनेट में मंत्री रहे भुवनेश चतुर्वेदी ने मुझे बताया कि आडवाणी को लगता था कि हवाला केस की आड़ में नरसिम्हा राव ने वाजपेयी की मदद की. ये केस सुप्रीम कोर्ट के सुपरविजन में आगे बढ़ रहा था लेकिन नरसिम्हा राव को पता था कि इससे वाजपेयी को मदद मिलेगी.
(पीवी नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी)
आडवाणी ने एक कार्यक्रम में चतुर्वेदी से पूछा था कि क्या उन्होंने किसी के कहने पर उन्हें प्रॉसिक्यूट किया था? यकीनन उनका इशारा वाजपेयी की तरफ था. लेकिन आडवाणी ने प्रत्यक्ष तौर पर किसी का नाम नहीं लिया. चतुर्वेदी ने आडवाणी से कहा था कि उन्होंने किसी के कहने पर कुछ नहीं किया. वो तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश था. बाद में यही सवाल आडवाणी ने पीवी नरसिम्हा राव से भी किया था. राव ने भी इससे इनकार किया था.
ये आज भी एक बड़ा यक्ष प्रश्न बना हुआ है कि अगर हवाला केस की जांच तेजी से आगे नहीं बढ़ती. तो क्या आडवाणी 1996 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर वाजपेयी के नाम का ऐलान करते?
श्रेय: तस्वीरें: इंडिया टुडे आर्काइव