90 के दशक का आगाज हो चुका था. देश चुनावी तैयारियों में व्यस्त था. पीवी नरसिम्हा राव राजनीति से संन्यास का फैसला कर चुके थे. उन्हें शायद आभास हो गया था कि 1991 का लोकसभा चुनाव जीतकर राजीव गांधी कैबिनेट में युवाओं को मौका देने की तैयारी कर रहे हैं. अपना पॉलिटिकल करियर खत्म समझ राव ने अपनी किताबें और कंप्यूटर समेत सारा सामान हैदराबाद अपने घर भिजवा दिया. उन्होंने तमिलनाडु के एक मठ श्री सिद्धेश्वरी पीठम को चिट्ठी भी लिखी. इस चिट्ठी में उन्होंने मठ का मठाधीश बनने की इच्छा जताई. लेकिन 1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही तमिलनाडु में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई और इस त्रासदी ने नरसिम्हा राव के पॉलिटिकल करियर को पूरी तरह से बदल दिया.
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने अपनी किताब How High Ministers Come to a decision में सिलसिलेवार तरीके से उन घटनाक्रमों का जिक्र किया है, जिस कारण नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे.
(एमएल फोतेदार और राजीव गांधी)
राजीव गांधी का वो टाटा…
20 मई 1991 की एक सुबह… नरसिम्हा राव महाराष्ट्र के रामतेक में थे. वहां पहले चरण की वोटिंग हो रही थी. राजीव गांधी ने प्रणब मुखर्जी और एम एल फोतेदार को एक संदेश भेजा. राजीव गांधी चुनाव प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश रवाना होने वाले थे. इस बीच उन्होंने मुखर्जी और फोतेदार से दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पर मिलने को कहा. वह कुछ ही घंटों के लिए दिल्ली रुकने वाले थे.
जब राजीव पालम एयरपोर्ट पहुंचे, वह काफी थके हुए नजर आए. कांग्रेस नेताओं ने उनसे घर चलने को कहा ताकि वो थोड़ी देर आराम कर अपनी थकान दूर कर सकें. घर पहुंचने पर राजीव ने मुखर्जी और फोतेदार दोनों से अलग-अलग बात की. राजीव ने फोतेदार से पूछा कि ‘हम कितनी सीटें जीत रहे हैं?’ इससे पहले कि फोतेदार कुछ जवाब दे पाते, राजीव ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा ‘मुझे पता है कि हम सरकार बनाएंगे.’ वह पूरी तरह आश्वस्त थे कि केंद्र में कांग्रेस पार्टी सरकार बनाने जा रही है. राजीव जैसे ही जाने लगे, उन्होंने पीछे मुड़कर कहा- ‘अच्छा फोतेदार जी, टाटा…’
(राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी)
फोतेदार ने बाद में बताया था कि राजीव गांधी ने कभी इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया था. ये उन दोनों की आखिरी मुलाकात साबित हुई. उसी रात राजीव गांधी ओडिशा रवाना हो गए और फिर वहां से अगली सुबह सीधे तमिलनाडु पहुंचे. उसी रात तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बुदुर में एक चुनावी जनसभा में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई.
ये भी इत्तेफाक ही है कि इंदिरा गांधी भी अपनी हत्या से एक दिन पहले ओडिशा गई थीं और जवाहर लाल नेहरू भी अपनी मौत से कुछ दिन पहले ओडिशा गए थे.
‘अभी तो अर्थी भी नहीं उठी है…’
राजीव गांधी का शव अगले दिन 22 मई की सुबह दिल्ली लाया गया. नरसिम्हा राव को जैसे ही राजीव गांधी की हत्या की खबर मिली. वह सीधे 10 जनपथ राजीव गांधी के आवास पहुंचे. नीरजा चौधरी उस गमगीन माहौल का जिक्र करते हुए बताती हैं, ’10 जनपथ पर लोगों की भीड़ लगातार बढ़ रही थी. कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता शोक में डूबे हुए थे. इससे पहले ही प्रणब मुखर्जी, आरके धवन और एम एल फोतेदार जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने 10 जनपथ के लॉन में ही राजीव गांधी के पार्थिव शरीर के इंतजार में रात बिताई थी. इस बीच दबी जुबान में ये अंदेशा भी जताया जा रहा था कि अब कांग्रेस पार्टी की अगुवाई कौन करेगा?’
नरसिम्हा राव के बगल में खड़े प्रणब मुखर्जी ने उनसे कहा कि ‘आप बन जाओ.’ इस पर राव ने कहा ‘अभी तो अर्थी भी नहीं उठी है. लोग कहेंगे कि आप राजनीति कर रहे हो, जिस को सब मिलकर तय करेंगे, वो बनेगा.’ इस पर मुखर्जी ने कहा कि ‘लेकिन आपके नाम पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है.’ निजी तौर पर राव भी चाहते थे कि वह प्रधानमंत्री बनें लेकिन सार्वजनिक तौर पर वह इससे ना-नुकूर ही करते रहे. वे मुखर्जी पर ज्यादा भरोसा नहीं करते थे. उन्हें लगता था कि प्रधानमंत्री की दौड़ से उन्हें हटाने के लिए मुखर्जी ऐसे सुझाव दे रहे हैं.
सोनिया गांधी की पहली पसंद नहीं थे नरसिम्हा राव
कहा जाता है कि प्रधानमंत्री पद के लिए नरसिम्हा राव एक तरह से सोनिया गांधी की पहली पसंद नहीं थे. वह शंकर दयाल शर्मा को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थीं. दिल्ली में कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की इमरजेंसी मीटिंग हुई. इस मीटिंग में अर्जुन सिंह ने सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष चुने जाने की वकालत की थी. उस समय शरद पवार भी कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में आगे थे.
लेकिन इंदिरा गांधी के प्रमुख सचिव रह चुके पीएन हक्सर ने सोनिया को सलाह दी थी कि नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनाना चाहिए.
(एमएल फोतेदार, नरसिम्हा राव और प्रणब मुखर्जी)
हालांकि, इससे पहले हक्सर ने शंकर दयाल शर्मा को पार्टी अध्यक्ष बनाने की सलाह दी थी. हक्सर की सलाह पर विचार करने के बाद सोनिया गांधी ने नटवर सिंह और अरुणा आसफ अली को शंकर दयाल शर्मा के पास भेजा गया लेकिन शंकर दयाल शर्मा ने ये कहकर ये पद ठुकरा दिया कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है. इसके बाद हक्सर ने पार्टी अध्यक्ष के लिए नरसिम्हा राव का नाम सुझाया.
(प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते नरसिम्हा राव)
जब शरद पवार बन गए थे राह का रोड़ा…
कांग्रेस पार्टी के नए अध्यक्ष पद के लिए शरद पवार भी एक प्रमुख दावेदार थे.वह देश का प्रधानमंत्री भी बनना चाहते थे. उन्होंने अपनी किताब Hour On My Phrases- From the Grassroots to the Corridors of Energy में बताया है कि सोनिया गांधी नहीं चाहती थीं कि कोई भी स्वतंत्र विचारों वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री बने. 10 जनपथ के वफादार दबी जुबान में कहने लगे थे कि शरद पवार के प्रधानमंत्री चुने जाने से गांधी परिवार को नुकसान होगा. वो लंबी रेस का घोड़ा साबित होंगे. इस वजह से नरसिम्हा राव को अधिक सुरक्षित माना गया क्योंकि उनकी उम्र अधिक थी. ऐसे में सोनिया गांधी की ना-नुकुर के बाद उन्हें इस बात के लिए मना लिया गया कि शरद पवार के बजाए नरसिम्हा राव को पीएम बनाया जाए.
किताब में बताया गया है कि सोनिया गांधी ने पार्टी के वफादारों की सलाह पर नरसिम्हा राव को चुनने का फैसला किया. राव को 35 से ज्यादा वोटों की बढ़त मिली थी. इसके बाद गांधी परिवार के भरोसेमंद पीसी एलेक्जेंडर ने पवार और नरसिम्हा राव के बीच मीटिंग कराई और इस मीटिंग में पवार को तीन बड़ी पोस्ट ऑफर की गईं. जून में चुनावी नतीजों की घोषणा के बाद राव को कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुना गया. इस चुनाव में कांग्रेस ने 521 में से 232 सीटें जीती थीं. इसके बाद 21 जून को नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. इस तरह राजनीति से संन्यास लेने की ठान चुके नरसिम्हा राव देश के प्राइम मिनिस्टर बन गए.